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कविता

लुटेरे बनकर इतिहास

संजय चतुर्वेदी


पुल, अस्‍पताल, सड़कें और इमारतें
किसी न किसी हत्‍यारे के नाम पर मिली हैं इस शहर को
हर चीज पर लगे हैं पत्‍थर उनके नाम के
उनके आमाल का साया है बच्‍चों पर
उनकी तरह रक्‍खे गए हैं नाम नई नस्‍ल के
वक्‍त का हर बड़ा लुटेरा
अमर है इस शहर में
कभी जब खोदा जाएगा ये शहर
लुटेरे बनकर इतिहास
खा जाएँगे भविष्‍य को
कीड़ों की तरह
कयामत के रोज
जब मुर्दे उठकर खड़े हो जाएँगे
न जाने क्‍या होगा इस शहर में ?

 


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